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दक्षिण भारत के एक गांव में सुजाता और उसके पति सुब्रह्मण्यम रहते थे। सुब्रह्मण्यम गांव में काम करके अपना पूरा खर्चा चलाते थे। और उनका एक लड़का भी था। जिसका नाम कृष्णा था और वह पढ़ाई में बहुत चाॅलाक था। सुजाता और सुब्रह्मण्यम चाहते थे। उसका बेटा कृष्णा खूब पढ़े और बहुत सारा पैसा कमाए। लेकिन कुछ दिनों के बाद अचानक सुब्रह्मण्यम बीमार हो गए। अपने बिस्तर से भी ना उठ पाते थे। सुजाता अब बहुत परेशान हो गई। क्योंकि पूरा खर्चा चलाने की जिम्मेदारी सुजाता पर आ गई। एक दिन जब सुजाता घर से बाहर जा रही थी। तब उसे एक आदमी मिला। जिसका नाम दुर्गा प्रसाद था। वह बहुत निर्दई और दयालु था। और उसको सुजाता की परेशानी के बारे में पता था। इसलिए उसने सुजाता से कहा। बहना अब तुम्हारे पति की तबीयत कैसी है। तो सुजाता ने कहा ठीक है। लेकिन इलाज कराने के लिए बहुत सारा पैसा लग रहा है। और आप तो यह भी जानते होंगे कि हमारी स्थिति कैसी है। तो दुर्गा प्रसाद बोले हां बहना लेकिन हमारे पास एक काम है। अगर तुम चाहो तो मेरे साथ काम कर सकती हो। तो सुजाता ने कहा कौन सा काम है भैया।
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तो दुर्गा प्रसाद ने कहा तुम तो यह बात जानती ही हो। कि मैं मछलियां पकड़ कर बाजार में बेचता हूं। लेकिन अब इतना काम बढ़ गया है। कि मै बाजार जाकर मछलियां नहीं बेच सकता। तो वो काम तुम कर सकती हो। मैं तुमको मछलियां पकड़ कर दूंगा। और तुम उन्हें बाजार जाकर बेचना। इसमें जो मुनाफा होगा उसको हम दोनों आपस में बराबर बराबर बांट लेंगे। क्या तुम को यह मंजूर है। तो सुजाता ने कहा हां हमें मंजूर है। मैं यह काम कल से ही शुरु करती हूं। और जब अगले दिन सुजाता तालाब के पास जाती है। दुर्गा प्रसाद उसको मछलियां पकड़ कर देता है। सुजाता फिर मछलियों को टोकरी में भरकर बेचने ले जाती है। गांव के सारे लोग सुजाता को मछलियां बेचते देखकर बहुत खुश हुए। क्योंकि अब उन्हें बाजार जाकर मछलियां खरीदनी नहीं पड़ती थी। और अब उन्हें घर पर ही बढ़िया ताजी मछलियां मिल जाती थी। उस दिन सुजाता की सारी मछलियां बिक गई। और अब हर दिन यही चलने लगा। दुर्गा प्रसाद मछलियां पकड़ कर देता था। और उन्हें सुजाता बाजार जाकर बेचती थी। और उस मुनाफे से सुजाता ने अपने पति का इलाज कराया।
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और अपने बेटे का अच्छे स्कूल में एडमिशन कराया। थोड़े दिनों के बाद जब सुजाता मछलियां बेचने जा रही थी। चलते चलते उसने अपने मन में विचार किया। कि यह सब मेरी वजह से मछली बिक रही है। मैं पूरे दिन भर मेहनत करती हूं। इसीलिए लोग हमारे पास से मछलियां खरीदते हैं। और मैं दुर्गा प्रसाद से ज्यादा मेहनत करती हूं। वह तो सिर्फ तालाब में मछली पकड़ते हैं। उनसे ज्यादा मुनाफा हमें मिलना चाहिए। शाम को दोनों मिले तब सुजाता बोली। भैया तुम सिर्फ मछलियां पकड़ते हो। मैं दिन भर मछलियां बेचती हूं।और मेहनत करती हूं। मुझे तो तुमसे ज्यादा मुनाफा मिलना चाहिए। तो दुर्गा प्रसाद बोला यह क्या कह रही हो बहना। मानता हूं तुम दिन भर मछलियां बेचती हो। मेहनत करती हो। पर मैं भी तो मेहनत करता हूं। मछलियों को पकड़ना क्या कोई बच्चों का खेल है। तो सुजाता ने कहा यह सब मैं नहीं जानती। जो मुझे कल से ज्यादा मुनाफा मिलेगा तो मैं काम करूंगी। वरना मैं कल से काम पर नहीं आऊंगी। तो दुर्गा प्रसाद बोला ठीक है सुजाता। जैसी आपकी मर्जी। इसके बाद सुजाता वहां से चली गई। और दूसरे दिन सुजाता सुबह जल्दी उठकर तालाब के किनारे गई।
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तालाब में कई बार जाल डाला तब जाकर उसको मछलियां मिली। उन्हें टोकरी में डाल कर बेचने चली गई। लेकिन उस दिन सुजाता की मछली किसी ने भी नहीं खरीदी। इसलिए क्योंकि दुर्गा प्रसाद ने दूसरी महिला को काम पर रख लिया था। और वो भी सस्ते दामों पर। वह महिला सुबह बहुत जल्दी मछलियां बेच कर चली जाती थी। और अब सुजाता के पास पछताने के अलावा कुछ नहीं बचा। यही चलता रहा। सुजाता सुबह तालाब के पास जाकर मछलियां पकड़ती। और फिर उन्हें बेचने जाती। अब उसकी मछलियों को कुछ लोग ही खरीदते। क्योंकि उसे आने में बहुत देर हो जाती थी। और मछलियां कम बिकने के कारण उसका मुनाफा कम हो गया। और मेहनत भी काफी करनी पड़ी। बाद में सुजाता विचार करती है यह मैंने क्या कर दिया। मुझे लगता था कि मछलियां बेचना कठिन है। और मछलियां पकड़ना सरल। पर नहीं मछलियां पकड़ना मेहनत का काम है। और कहती है जब दुर्गा प्रसाद के साथ मछलियां बेचती थी। तब अच्छा मुनाफा मिलता था। अब तो कुछ भी नहीं मिलता। मेहनत भी बहुत ज्यादा करनी पड़ती है। और कहने लगी मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी। अब सुजाता बैठी रो रही है।
शिक्षा - हमें ज्यादा लालच नहीं करना चाहिए। ज्यादा पाने के चक्कर में हम सब खो बैठते हैं।