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एक बार की बात है जयपुर के
गांव में। एक मोहन नाम का लड़का रहता था। वो एक किसान के परिवार में रहता था। वो अपने
मम्मी पापा और छोटे बहन के साथ रहता था। जब उसके पिता खेत जोतने थे। तब वो बदको की
देखभाल करता था। और उन सभी बदको को खाना खिलाता था। और उन बदको के अंडे बेचकर।
अपने पिता का खर्च चलाता था। मोहन को उन बदकों की। देखभाल बहुत ध्यान से करनी
पड़ती थी। कि उन्हें कहीं गिद्ध दबोच ना ले जाए। और उन सभी बदकों में से। एक बदक
के तीन बच्चे थे। वो इतने ज्यादा बड़े नहीं थे। कि अपने आप अपना खाना ढूंढ सकें।
मोहन अपनी बदको को। उनके बच्चों के साथ बाहर घुमाने ले जाता था। और जब एक दिन।
मोहन बदको को बाहर ले गया। तब वहां पर एक बच्चे पर। एक
गिद्ध की नजर पड़ी। और उस गिद्ध ने उस बच्चे को दोपहर का नाश्ता बनाने को सोचा।
मोहन थोड़ा आगे था। मौका पाकर गिद्ध ने। उस बच्चे को दबोच लिया। और उसको लेकर उड़
पड़ा। जब उस बदक के बच्चे की। मोहन ने आवाज सुनी।
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तब उसने पीछे मुड़कर देखा। कि एक बदक के बच्चे को। गिद्ध अपने
पंजों से दबोचे लिए जा रहा है। तो मोहन के हाथ में जो छड़ी थी। मोहन ने वह छडी।
गिद्ध के पंखों पर मारी। और गिद्ध के पंजों से। वह बदक का बच्चा छूट कर। एक कुएं
में जा गिरा। और वह बहुत
गहरा कुआं था। पैर में चोट लगने के कारण। वह तैर नहीं पा रहा था। तब मोहन भागकर घर
जाता है। और घर से एक बाल्टी और रस्सी ले आता है। उस बाल्टी और रस्सी की मदद से
मोहन। उस बच्चे को बाहर निकाल लेता है। और तुरंत अपने घर ले जाता है। बदक के बच्चे
के पैर में। चोट लगी थी। इसी कारण वह चल नहीं सकता था। मोहन ने उसकी मरहम पट्टी
की। और उसे बाहर लाना बंद कर दिया। और मोहन कहता है मुझे माफ कर दो। मेरी गलती से।
तुम्हें यह सब हुआ। मोहन रोने लगा। उस दिन से मोहन ने उस बच्चे की बहुत देखभाल की।
और उसको प्यार दिया। जब तलक वह बच्चा बड़ा नहीं हो गया। उसकी काफी देखभाल की। और
वह बच्चा भी उसकी जान बचा। लेने के लिए।
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मोहन से बहुत प्यार करता था। वह सोचती थी
कि। बड़ी होकर मोहन को अंडे देगी। तभी मोहन का कर्ज उतार पाएगी। तभी एक दिन मोहन
के पिताजी मोहन से बोले। बेटा हमारे ऊपर कर्ज बहुत बढ़ गया है। इसे उतारने के लिए
हम बदको को बेचना चाहते है। तो मोहन बोला। पिताजी हम इतने दिनों से। इन्हीं के
अंडे बेचकर। पैसे कमाए हैं। इन्हें आप मत बेचो। तो
उसके पिता कहते हैं। मैं तुम्हारी परेशानी समझता हूं। बेटा अगर हमने यह। सारा कर्ज
चुका दिया तो। आराम से दाल खाकर जीवित रह सकेगे। तो मोहन बोला ठीक है। मैं आपको
उदास नहीं देख सकता। लेकिन आप उस बदक को मत बेचिए। तो मोहन के पिता कहते हैं। हां हम उस बदक को
नहीं बेचेगे। उस दिन से मोहन से वो बदक बहुत प्यार करने लगी। और वह फिर से भगवान
से कहती है। मुझे अंडे देने की शक्ति दो। तभी मै मोहन की सहायता कर सकूंगी। और
थोड़े दिनों के बाद। बदकी ने अंडे देने शुरू कर दिए। यह देखकर मोहन चौक गया।
क्योंकि बदकी द्वारा दिया हुआ अंडा। उसको सोने का दिखाई पड़ रहा था। मोहन सोचता
है। क्या यह मुझे ही
दिखाई दे रहा है।
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वो
सोचता की जब तक बदकी दूसरा अंडा ना दें। तब तलक हमे ये बात किसी को भी नही बातानी
चाहिए। दूसरे दिन फिर से बदकी ने एक सोने का अंडा दिया। और यह देखकर मोहन बहुत खुश
हुआ। फिर उसने अपने पिता और मां बहन को बुलाकर। वो सोने के अंडे दिखाए। और कहा इस
बदकी ने हमारी सारी परेशानी दूर कर दी। यह देखकर पहले तो वो सब सोच में पड़ गए।
लेकिन अगले दिन बदकी ने। उनको एक और सोने का अंडा दिया। उन सोने के अंडो को देखकर।
सबको मोहन पर भरोसा हो गया। और फिर बदकी ने बहुत सारे अंडे दिए। और मोहन के घर
वालों ने। उन अंडों को बेचकर। अपनी सारी मुसीबतें दूर कर ली। और उन्होंने जो वो
बदके और जो खेत बेचा
था। वह फिर से खरीद लिया। इसके बाद बदकी ने अंडे नहीं दिए। इस बात का उन्हें
बिल्कुल दुख नहीं हुआ।